'माजिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए
रो लेने दे अकेला मुझे अपने हाल पर
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तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर
कहने की तो बात नहीं है लेकिन कहनी पड़ती है
शाम छत पर उतर गई होगी
कल जो मैं ने झाँक के देखा उस की नीली आँखों में
उस का चेहरा उदास है 'माजिद'
लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए
धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है