वो और होंगे पी के जो सरशार हो गए
हर जाम से हमें तो नई तिश्नगी मिली
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दुनिया में हर क़दम पे हमें तीरगी मिली
ये इख़्लास-ए-गराँ-माया बहुत है
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहीं
जब बिगड़ते हैं बात बात पे वो
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है
ख़्वाब देखे थे सुहाने कितने
तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है
बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
शाम को सुब्ह अँधेरे को उजाला लिक्खें
दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है
दिल वो सहरा है कि जिस में रात दिन