बे-हिस के तग़ाफ़ुल का तो शिकवा बे-सूद
पत्थर से पिघलने का तक़ाज़ा बे-सूद
बेगाना है जो रस्म-ए-रवा-दारी से
उस दिल से मुरव्वत की तमन्ना बे-सूद
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हम को मस्ती ओ ख़्वारी आई
वो और होंगे पी के जो सरशार हो गए
अहल-ए-कशती ने ख़ुद-कुशी की थी
फिर किसी बेवफ़ा की याद आई
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहीं
मेरे मरने की भी उन को न ख़बर दी जाए
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है
ख़्वाब देखे थे सुहाने कितने
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
ज़िंदगी हम से ख़फ़ा हो जैसे
टालने से वक़्त क्या टलता रहा