अपमान Poetry (page 3)
ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक
शहज़ाद अहमद
कमरों में छुपने के दिन हैं और न बरहना रातें हैं
शहज़ाद अहमद
जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुस्वाई
शहज़ाद अहमद
इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ
शहज़ाद अहमद
अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
शहज़ाद अहमद
आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई
शहज़ाद अहमद
तेरे वा'दे को कभी झूट नहीं समझूँगा
शहरयार
निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
शहरयार
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को
शहरयार
फिर उसी शोख़ की तस्वीर उतर आई है
शाहिद इश्क़ी
फ़स्ल-ए-गुल तोहमत-ए-जुनूँ लाई
शाहिद इश्क़ी
गर्म-जोशी के नगर में सर्द-तन्हाई मिली
शाहीन बद्र
मुझ को शाम-ए-हिज्र की ये जल्वा-आराई बहुत
शहाब अशरफ़
ब'अद-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
शाह नसीर
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
शाह नसीर
लिल्लाह कोई कोशिश न करे उल्फ़त में मुझे समझाने की
शादाँ इंदौरी
जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी
शब्बीर शाहिद
जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी
शब्बीर शाहिद
जब सबक़ दे उन्हें आईना ख़ुद-आराई का
सेहर इश्क़ाबादी
जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या
सरवत ज़ेहरा
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
सरफ़राज़ ख़ालिद
ख़बर है मेरी रुस्वाई की
सरफ़राज़ शाहिद
जीना मरना दोनों मुहाल
सरस्वती सरन कैफ़
उस के सुनने के लिए जम'अ हुआ है महशर
साक़िब लखनवी
कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी
सलमान अख़्तर
चश्म-ए-नम पहले शफ़क़ बन के सँवरना चाहे
सलमा शाहीन
उस को मिल कर देख शायद वो तिरा आईना हो
सलीम शाहिद
सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है
सलीम कौसर
ये नहीं है कि नवाज़े न गए हों हम लोग
सलीम अहमद
वो जुनूँ को बढ़ाए जाएँगे
सलीम अहमद
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