उस के सुनने के लिए जम'अ हुआ है महशर
रह गया था जो फ़साना मिरी रुस्वाई का
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ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई
यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
बला से हो पामाल सारा ज़माना
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ
चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब'
दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है