ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Habib Jalib
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किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
मैं नहीं कहता कि दुनिया को बदल कर राह चल
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी
जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब'
ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई
सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ
बला से हो पामाल सारा ज़माना