सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
क्या हुआ एक शब में क्या न हुआ
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मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
हज़ार फूल लिए मौसम-ए-बहार आए
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में
असीर-ए-इश्क़-ए-मरज़ हैं तो क्या दवा करते
बला से हो पामाल सारा ज़माना
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी
बाग़बाँ ने आग दी जब आशियाने को मिरे
सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल