सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल
देखने वाले तरस खा कर दुआ देने लगे
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Gulzar
Mohsin Naqvi
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ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई
बस ऐ फ़लक नशात-ए-दिल का इंतिक़ाम हो चुका
मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में
बला से हो पामाल सारा ज़माना
दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
कहने को मुश्त-ए-पर की असीरी तो थी मगर
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
हज़ार फूल लिए मौसम-ए-बहार आए
आप उठ रहे हैं क्यूँ मिरे आज़ार देख कर