मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
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हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
असीर-ए-इश्क़-ए-मरज़ हैं तो क्या दवा करते
जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब'
दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ
हज़ार फूल लिए मौसम-ए-बहार आए
मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं