हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
सुनने वाले रात कटने की दुआ देने लगे
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
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ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
बस ऐ फ़लक नशात-ए-दिल का इंतिक़ाम हो चुका
दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम
कहने को मुश्त-ए-पर की असीरी तो थी मगर
आप उठ रहे हैं क्यूँ मिरे आज़ार देख कर
यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था
कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते
चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें
मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में