चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें
अगर दिल बैठ जाएगा तो उठ आएँगे महफ़िल से
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Gulzar
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मैं नहीं कहता कि दुनिया को बदल कर राह चल
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी
बस ऐ फ़लक नशात-ए-दिल का इंतिक़ाम हो चुका
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल
बला से हो पामाल सारा ज़माना
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं