अपमान Poetry (page 2)

क्यूँ न 'तनवीर' फिर इज़हार की जुरअत कीजे

तनवीर सामानी

रोज़ तब्दील हुआ है मिरे दिल का मौसम

तनवीर सामानी

मैं ने ज़ुल्मत के फ़ुसूँ से भागना चाहा मगर

ताज सईद

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

ताज सईद

न हो तू जिस में वो दिल भी है क्या दिल

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

हम से पहले तो कोई यूँ न फिरा आवारा

सय्यद मुनीर

कसरत-ए-औलाद

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

तस्कीन-ए-अना

सुलैमान अरीब

इक तिरा दर्द है तन्हाई है रुस्वाई है

सुलैमान अहमद मानी

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के

सूफ़ी तबस्सुम

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी तबस्सुम

मेरी रुस्वाई का यूँ जश्न मनाया तुम ने

सिया सचदेव

जिस दिन से मिरी तुम से शनासाई हुई है

सिया सचदेव

दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

सिराज औरंगाबादी

दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर

सिराज औरंगाबादी

हमारे नाम लिखी जा चुकी थी रुस्वाई

सिद्दीक़ मुजीबी

न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़

सिद्दीक़ मुजीबी

बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा

शऊर बलगिरामी

गिल भीक में लेते हैं जिस फूल से रानाई

शुजा

मुक़ाबिल इक ज़माना और सफ़-आराई मेरी

शौकत मेहदी

देख न पाया जिस पैकर को वादों की अँगनाई में

शारिक़ जमाल

कहाँ है आ जा

शकील बदायुनी

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

शकील बदायुनी

नियाज़-ओ-नाज़ की ये शान-ए-ज़ेबाई नहीं जाती

शकील बदायुनी

राज़ में रख तिरी रुस्वाई का क़िस्सा मैं हूँ

शकील आज़मी

बात से बात की गहराई चली जाती है

शकील आज़मी

वाक़िआ कुछ भी हो सच कहने में रुस्वाई है

शहज़ाद अहमद

मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक

शहज़ाद अहमद

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

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