मैं ने ज़ुल्मत के फ़ुसूँ से भागना चाहा मगर
मेरे पीछे भागती फिरती मिरी रुस्वाई थी
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(599) Peoples Rate This
काली घटा में चाँद ने चेहरा छुपा लिया
मसअला ये भी तो है इस अहद का ऐ जान-ए-जाँ
किस ने आ कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में
पत्ता पत्ता शाख़ से टूटे दरवाज़ों पे वहशत सी
शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी
खिड़की में एक नार जो महव-ए-ख़याल है
जी में आता है कि चल कर जंगलों में जा रहें
बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है