हमारे नाम लिखी जा चुकी थी रुस्वाई
हमें तो होना था यूँ भी ख़राब चारों तरफ़
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Gulzar
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न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़
बस एक बूँद थी औराक़-ए-जाँ में फैल गई
आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था
शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है
रात हुई फिर हम से इक नादानी थोड़ी सी
बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था
दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए
अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है
नैरंग-ए-जहाँ रंग-ए-तमाशा है तो क्या है
वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था
न पूछ मर्ग-ए-शनासाई का सबब क्या है