तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'
तमाम उम्र ये सदमा रहेगा मेरे साथ
कि अपने आप को मैं ने फ़रोख़्त कर डाला
किसी को पाने की नाकाम आरज़ू के हाथ
Rahat Indori
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दिल को बर्बाद किए जाती है
हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
इलाही उस को मोहब्बत से कुछ तअल्लुक़ है
किस क़यामत के लम्हे थे 'अख़्तर'
रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़