हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था
कहीं नज़दीक ही जंगल में कोई गीत गाता था
फ़ज़ा में रस भरे नग़्मों की हल्की हल्की बारिश थी
मिरे दामन में छम-छम आँसुओं का मेंह बरसता था
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(696) Peoples Rate This
मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ
एक सब्र-आज़मा जुदाई है
सोते में कोई आह भरी तो होगी
सुनने वाले फ़साना तेरा है
एक तस्वीर खींच दी गोया
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
दिल-ए-हसरत-ज़दा में एक शोला सा भड़कता है
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता