मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ
अर्श से ता फ़र्श हैं छाई हुई
चाँदनी फैली हुई है हर तरफ़
रात की मय्यत है काफ़्नाई हुई
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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एक सब्र-आज़मा जुदाई है
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
दिन मुरादों के ऐश की रातें
क़ल्ब ज़िंदा है लफ़्ज़ हैं बे-जान
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं
हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
सुनने वाले फ़साना तेरा है
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था