एक सब्र-आज़मा जुदाई है
मिलने-जुलने की बंद हैं राहें
मैं ने उस माह-रू की गर्दन में
डाल दी हैं ख़याल की बाहें
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ग़म-ए-दिल का इलाज दुनिया में
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
ये मुलाक़ात लूटे लेती है
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
शोले भड़काओ देखते क्या हो
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
पिहना-ए-आसमाँ पे हैं तारी उदासियाँ
इक तीर कलेजे में पिरोया हम ने
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का