क़ल्ब ज़िंदा है लफ़्ज़ हैं बे-जान
कीजिए क्या अगर न चुप रहिए
जिस को दुनिया ज़बान कहती है
उस को जज़्बात का कफ़न कहिए
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(715) Peoples Rate This
रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
ये मुलाक़ात लूटे लेती है