ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
क्या ख़ूब नया अंदाज़ है ये! क्या ख़ूब निराला तौर है ये
फ़रियाद भी है ये नग़्मा भी ये शेर भी है अफ़्साना भी
ये रक़्स नहीं ये रक़्स नहीं कुछ और है ये कुछ और है ये
Rahat Indori
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एक सब्र-आज़मा जुदाई है
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े
जो हो न सका हम से वो कर जाओ तुम
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं