मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
कोई शराब बनाओ बहार के दिन हैं
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Wasi Shah
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Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
ज़ख़्म खाने के दिन गए लेकिन
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
ऐ बख़्त! मज़े कुछ तो उठाऊँ मैं भी
तिरी नाज़ुक और लाँबी उँगलियाँ
हमेशा जागते ही जागते सहर कर दी
उस से पूछे कोई चाहत के मज़े