नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
फ़ज़ा में छूट रहे हैं ज़िया के फ़व्वारे
रुख़-ए-हसीना-ए-फ़ितरत से उठ गई है नक़ाब
नज़र को ढूँड रहे हैं हसीन नज़्ज़ारे
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ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
बुत लाखों मोहब्बत में तराशे ऐसे
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
शोले भड़काओ देखते क्या हो
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
बातें करने में फूल झड़ते हैं
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े