बातें करने में फूल झड़ते हैं
बर्क़ गिरती है मुस्कुराने में
नज़रें! जैसे फ़राख़-दिल साक़ी
ख़ुम लुंढाए शराब-ख़ाने में
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
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हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
इस में कोई मिरा शरीक नहीं
जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें
एक तस्वीर खींच दी गोया
क्या ख़ाक करम है जो मुझे तू बख़्शे
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
जी को नाहक़ निढाल करते हो
आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है
फ़ज़ा है नूर की बारिश से सीम-गूँ इस वक़्त