जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें
ले डूबेगी इक रोज़ यही प्यास हमें
लो ख़त्म हुआ आज फ़रेब-ए-उम्मीद
अब यास की जानिब से भी है यास हमें
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सई-ए-राहत हो गई ख़्वाब-ओ-ख़याल
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार
सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
तिरी नाज़ुक और लाँबी उँगलियाँ
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं