कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मैं ख़्वाब देख रहा हूँ मुझे जगाओ नहीं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(678) Peoples Rate This
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
बातें करने में फूल झड़ते हैं
पढ़ा है मैं ने फ़सानों में जिस तरह 'अख़्तर'
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
हवाएँ ख़ुनुक चाँदनी पुर-सुकूँ
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
जी को नाहक़ निढाल करते हो