ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
ये दिल कि है तपिश-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का सोता
सितम सहे नहीं जाते भरी जवानी के
मैं इब्तिदा-ए-जवानी में मर गया होता
Gulzar
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जी को नाहक़ निढाल करते हो
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
पिहना-ए-आसमाँ पे हैं तारी उदासियाँ
रात को बैठ कर लब-ए-दरिया
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
सोते में कोई आह भरी तो होगी
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू