उम्र भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
और फिर हश्र की ज़हमत भी उठेगी या-रब
लेकिन अपना ये जुनूँ हाए ये जिंस-ए-नायाब
कभी इस जिंस की क़ीमत भी उठेगी या-रब
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तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'
दिल को बर्बाद किए जाती है
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
बातें करने में फूल झड़ते हैं
हुस्न की दास्ताँ बना डाला
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े