उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
ग़म की महफ़िल को सजाया है ज़रा देखो तो
चश्म-ए-गिर्यां, दिल-ए-पुर-ख़ूँ, जिगर-ए-ज़ख़्म-आलूद
मैं ने इक बाग़ लगाया है ज़रा देखो तो
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
दिल को बर्बाद किए जाती है
फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
फ़िदा-ए-मंज़िल-ए-बे-जादा हैं ख़ुदा रक्खे
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है