कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
कुछ इज्ज़-ओ-नियाइश में मज़ा आता है
लज़्ज़त की तलाश आह कहाँ ले आई
ज़ख़्मों की नुमाइश में मज़ा आता है
Allama Iqbal
Habib Jalib
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है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
तैरे गीतों की लय अरे तौबा
आसूदगी-ए-ज़ात नहीं हो सकती
दिन मुरादों के ऐश की रातें
इक तीर कलेजे में पिरोया हम ने
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में