हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
बे-नक़ाबी ही बे-नक़ाबी है
तुम भी आ जाओ चाँदनी बन कर
आज की रात माहताबी है
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
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हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
फ़ज़ा है नूर की बारिश से सीम-गूँ इस वक़्त
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
हवाएँ ख़ुनुक चाँदनी पुर-सुकूँ
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया
क्या ख़ाक करम है जो मुझे तू बख़्शे
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी