हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
जिस में महसूस ये हुआ 'अख़्तर'
मुझ पे गोया किसी ने फेंक दी हैं
एक मुट्ठी में बिजलियाँ भर कर
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बातें करने में फूल झड़ते हैं
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है
क्या ख़ाक करम है जो मुझे तू बख़्शे
फ़ज़ा है नूर की बारिश से सीम-गूँ इस वक़्त
शोले भड़काओ देखते क्या हो
हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो