जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
हाए क्या खिल-खिला के हँसते हैं
और हम बे-नसीब ऐ 'अख़्तर'
मुस्कुराने को भी तरसते हैं
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
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Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
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दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए
शोले भड़काओ देखते क्या हो
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं