दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
रूह तड़पे मैं मुस्कुराए जाऊँ
शेर कहता रहूँ यूँही 'अख़्तर'
बात बिगड़ी हुई बनाए जाऊँ
Anwar Masood
Allama Iqbal
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Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े
सोते में कोई आह भरी तो होगी
सुनने वाले फ़साना तेरा है
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब
ये मुलाक़ात लूटे लेती है
सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ
तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
एक सब्र-आज़मा जुदाई है
उन में रहती थी इक हँसी बन कर