सोते में कोई आह भरी तो होगी
सीने में कोई हूक उठी तो होगी
रोने की इक आवाज़ कभी पिछले पहर
सदक़े तिरी नींदों के सुनी तो होगी
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एक सब्र-आज़मा जुदाई है
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
एक तस्वीर खींच दी गोया
ख़ूँ-भरे जाम उंडेलता हूँ मैं
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया