गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
और राज़-ओ-नियाज़ की बातें
ऐ दिल! अरमान रह न जाए कोई
फिर न होंगी नसीब ये रातें
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दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
हो के बे-फ़िक्र तान उड़ाए जा
रात को बैठ कर लब-ए-दरिया
फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है
इस तरह तबीअत कभी शैदा न हुई
एक सब्र-आज़मा जुदाई है
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल