फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
हवा मख़मूर है बादल ग़रीक़-ए-रंग-ओ-मस्ती हैं
मिरा सरशार दिल मुझ से ये कहता है कि ऐ 'अख़्तर'
ये बूँदें पड़ रही हैं या तमन्नाएँ बरसती हैं
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(629) Peoples Rate This
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया
जा रहा था मैं सर झुकाए हुए
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का
इलाही उस को मोहब्बत से कुछ तअल्लुक़ है
किस क़यामत के लम्हे थे 'अख़्तर'
सुनने वाले फ़साना तेरा है
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
दिन मुरादों के ऐश की रातें
कोई जंगल में गा रहा है गीत