तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
जीता भी नहीं, चाक-ए-जिगर सीता हूँ
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तिरी उम्र दराज़
मैं बादा नहीं तेरा लहू पीता हूँ
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(709) Peoples Rate This
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
किस क़यामत के लम्हे थे 'अख़्तर'
ये आज की दुनिया भी है मरने वाली
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
बातें करने में फूल झड़ते हैं
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है
पुर-कैफ़ ज़ियाएँ होती हैं पुर-नूर उजाले होते हैं
एक सब्र-आज़मा जुदाई है