कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
और माज़ी में ज़िंदगी भर दी
उँगलियों को फ़ज़ा में लहरा कर
तू ने इक दास्ताँ रक़म कर दी
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
ग़म-ए-दिल का इलाज दुनिया में
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
ज़ख़्म खाने के दिन गए लेकिन
गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात