ख़ूँ-भरे जाम उंडेलता हूँ मैं
टीस और दर्द झेलता हूँ मैं
तुम समझते हो शेर कहता हूँ
अपने ज़ख़्मों से खेलता हूँ मैं
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इस रुपहली शराब-ए-नूरीं से
हल्की हल्की फुवार के दौरान में
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ