जो पूछता है कोई सुर्ख़ क्यूँ हैं आज आँखें
तो आँखें मल के मैं कहता हूँ रात सो न सका
हज़ार चाहूँ मगर ये न कह सकूँगा कभी
कि रात रोने की ख़्वाहिश थी और रो न सका
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कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
फ़ज़ा है नूर की बारिश से सीम-गूँ इस वक़्त
शबाब नाम है उस जाँ-नवाज़ लम्हे का
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं
कोई जंगल में गा रहा है गीत
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
हल्की हल्की फुवार के दौरान में
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है