इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
उधर सुकूत भी फ़रियाद से छलकता है
वहाँ तो हल्क़ में फँसता नहीं निवाला भी
यहाँ ये हाल कि सीने में साँस अटकता है
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मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
इस तरह तबीअत कभी शैदा न हुई
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
शोले भड़काओ देखते क्या हो
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ
पढ़ा है मैं ने फ़सानों में जिस तरह 'अख़्तर'
एक सब्र-आज़मा जुदाई है
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब