कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
कुछ रंग तो महफ़िल में जमाया बारे
सरमाया-ए-इबरत हूँ ज़माने के लिए
दुनिया के कसी काम तो आया बारे
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सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है
ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
इस में कोई मिरा शरीक नहीं
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है