वो यास कि उम्मीद कि चश्मे फूटें
वो ग़म कि तरब-ज़ार बहारें लूटें
क्या चीज़ है वल्लाह ये मस्लक अपना
वो कुफ़्र कि ईमान के छक्के छूटें
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ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
जा रहा था मैं सर झुकाए हुए
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है
हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था
आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ
ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है