हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
सीने में मचलती है तमन्ना-ए-वफ़ा
चलते रहे लेकिन न हुए ख़ाक अब तक
इक ढोंग है ऐ चर्ख़ तिरी सई-ए-जफ़ा
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झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
ये मुलाक़ात लूटे लेती है
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
गीत के हाथों लुटा जाता हूँ मैं
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब