गीत के हाथों लुटा जाता हूँ मैं
हाए क्या से क्या हुआ जाता हूँ मैं
मुतरिबा! ऐ मुतरिबा! लेना मुझे
एक अंगड़ाई बना जाता हूँ मैं
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(635) Peoples Rate This
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
बुत लाखों मोहब्बत में तराशे ऐसे
फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया
हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है
वो दिल नहीं रहा वो तबीअत नहीं रही
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
हुस्न की दास्ताँ बना डाला
ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है
हमेशा जागते ही जागते सहर कर दी
हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था
तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया