वो दिल नहीं रहा वो तबीअत नहीं रही
वो शब को ख़ून रोने की आदत नहीं रही
महसूस कर रहा हूँ मैं जीने की तल्ख़ियाँ
शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं रही
Parveen Shakir
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फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
हवाएँ ख़ुनुक चाँदनी पुर-सुकूँ
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
उस से पूछे कोई चाहत के मज़े
झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता