साँसों में लिए कर्ब-ओ-बला जीता हूँ
सिलते नहीं जो ज़ख़्म उन्हें सीता हूँ
जी भर के ज़माने ने पिया ख़ूँ मेरा
बाक़ी जो बचा उस को मैं ख़ुद पीता हूँ
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तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
पुर-कैफ़ ज़ियाएँ होती हैं पुर-नूर उजाले होते हैं
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
दिन मुरादों के ऐश की रातें
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
सुनने वाले फ़साना तेरा है
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया