माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
मुर्दों की तरह क़ब्र में सड़ जाते हैं
में दोस्त से बछड़ा हुआ शाएर ही सही
लोग अपने ज़माने से बिछड़ जाते हैं
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
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Gulzar
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जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब
शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
सोते में कोई आह भरी तो होगी