मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है
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कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
सुनने वाले फ़साना तेरा है
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
मुतरिब-ए-दिल की वो तानें क्या हुईं
इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
हवाएँ ख़ुनुक चाँदनी पुर-सुकूँ
दिल-ए-हसरत-ज़दा में एक शोला सा भड़कता है
तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़
साँसों में लिए कर्ब-ओ-बला जीता हूँ