पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
बहते दरिया की रवानी बंद कर सकते नहीं
शेर यूँ कहने को कह लें लेकिन 'अख़्तर' सच ये है
दिल के महसूसात को लफ़्ज़ों में भर सकते नहीं
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किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
बहार-ए-फ़िक्र के जल्वे लुटा दिए हम ने
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
जा रहा था मैं सर झुकाए हुए
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े
शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं